यादों का पंछी लफ्जों की उड़ान पर था।
डूबता सूरज फिर सफर की थकान पर था।
तेरी यादों का जंगल हरसू फैला था मेरी ओर
मैं भटकता रहा तेरी कायनात में, पहुंचा तो कोई और मकाम पर था।
तेरी आंखों का पहरा, तेरे जिस्म का संदल, वो यादों की बस्ती
सब ले आया मैं, नाकाम पर था।
चुन-चुन कर बांट दी उसने सब नियामतें दुनिया को,
जब आई बारी मेरी तो बाखुदा खुदा भी दूसरे काम पर था।
तू जाने कब निकल गई मुझसे सदियों आगे
मेरे लिए आज भी वक्त ठहरा उसी मुलाकात की शाम पर था।
teri yaado ke aks mere zindagi me meethi dhoop ki tarah hamesha rahenge,
जवाब देंहटाएंjab bhi tujhe yaad karna hoga to meethi dhoop ko dekh liya karenge.