शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

तेरा खयाल सही

तू न सही तेरा खयाल सही
राहत न मिले तो बेहाल सही

हम पर तेरी आंखों का सुरूर हावी है
आज हुआ ये जुर्मे इकबाल सही

कई कत्ल हो गए इस शहर में
नई खबर नहीं, ताजा हाल सही

कुर्सी के फेर में चौराहों पर बिक गये
कोई शर्म नहीं, मोटी खाल सही

चिल्लाने में भी गीत का लुत्फ है
दिल ए दर्द, बिना सुर बिना ताल सही

तेरे खून में इक अजब सा मजा है
चूसने के लिए जम्हूरियत का जाल सही

कोई सुनता नहीं बहरों के इस मुल्क में
हल्ला मचाने को एक बेमतबल बवाल सही

सफेदपोशों से जवाब की उम्मीद की बेमानी है
चलो जिंदगी इक खूबसूरत सवाल सही

सुनते हैं कि पानी बहता है अब इस जिस्म में
कोई भगवा, कोई कहता है लाल सही

अफवाह है कि किस्मत बदल देंगे मुल्क की
चलो इसी बहाने बीता एक और साल सही ।

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