कहते हैं कि वक्त नहीं लौटता। वक्त लौटता है, बस जरूरत है उसे यादों में सहेजने की, इस पन्ने पर यही कोशिश की गई है। ये तमाम लफ्ज मेरी जिंदगी की किसी न किसी वाकये से जुड़े हुए हैं। जब भी मुझे उन लम्हों को फिर से जीना होगा। मैं इन शब्दों के पुल से वापस लौटुंगा, एक बार फिर से पुराने दौर में। ये मेरी टाइम मशीन है जो विज्ञान के बजाए भावनाओं के रसायन से चलती है।
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010
याद सयानी है।
इस वक्त की भी अजब कहानी है।
वो न आए तो पहाड़ जो आ जाए तो बहता पानी है।
खोलो अपने पंखों को और छू लो ये आसमां
कौन जाने कल क्या होगा बस दो-चार दिन की ये जवानी है।
मोहब्बत में गुजार दो जिंदगी किसी हसीन दरखत के तले
क्या फिक्र की कौन गुजर गया ये कांरवा तो हमेच्चा आनी-जानी है।
कह दो चांद से भी की अपनी हद में रहे
उसको भी मालूम हो कि इक दीवना ऐसा भी है जो करता अपनी मनमानी है।
बहुत सुना दी है कहानियां चांद और परीयों के देच्च में जाने की
कुछ हकीकत भी सुनाओं की कोई मुल्क ए मोहब्बत ऐसा भी है जहां न राजा न कोई रानी है।
कभी मेरे आंखों से निकाल दे पानी के सैलाब
और कभी होठों पर तब्बसुम
इस याद का क्या करें ये भी मेरे माच्चूक की तरह बहुत सयानी है।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
जो रुबाई रहे,वे रहे और के..जो गजल हो गए वे हमारे बने।
जवाब देंहटाएंदर्द जब पास था,हम शहंशाह थे,दर्द जब से गया बेसहारे बने।