सोमवार, 12 अप्रैल 2010

यादें क्यों पिघलती हैं......

कल फिर मेरे अंदर कुछ पिघला-पिघला था।
मुझे यकीं है, कोई याद तेरी आंख से भी टपकी होगी।

कभी रात तेरी भी आंखों में कटी होगी।
कभी दिन तेरा भी सदियों से गुजरा होगा।

कभी तूने भी अंधेरों में रोशनी खोजी होगी,
कभी तुझे भी खामो्यी का जंगल मिला होगा।

कभी तेरी नदियां भी प्यासी होगी,
कभी तेरा सहरा भी सूखा होगा।

कोई दर्द रह-रहकर तुझसे मिलता होगा,
कोई मेला तेरी खिड़की तले भी लगता होगा।

कल फिर मेरी आंख याद टपकी थी,
तेरे अंदर भी जरूर कुछ पिघला होगा।

1 टिप्पणी:

  1. bhai bhut he accha likha hai aapne.ye thik hai yade aapko jaga te hai!aage badene ke umeed jagate hai!yade betee huee apka brtaman hoti hai."esh leye yade yade aati hai"

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