रविवार, 27 फ़रवरी 2011

उदास नज्में

इन जाहिलों की भीड़ में जो थोडे से जुदा हो गए
मत पूछिए कि समझ बैठे की वो खुदा हो गए।

जिन्होंने कश्तियों को निकाला हैं तुफां से वो हाशिए पर
जो इस मुल्क को किनारे पर डुबा आए खुदाकसम वो नाखूदा हो गए।

ये अजब दौर कायम हुआ है जेहनी मुफलीसी का
वो मशहूर हो गए जो बेहुदा हो गए।

मेरी नज्में न जाने क्यों उदास-उदास रहती हैं तब से
मरने वाले आम और मारने वाले अलहदा हो गए।

इस व्यवस्था में से अब मुर्दो की सी बू आती है
अब इबादत करने वाले काफिर, कुफ्र करने वाले बाखूदा हो गए।

ये जाने कैसा मौसम चला है मेरे शहर में
शिकवा करने की हिमाकत करने वाले अरसे पहले गुमशुदा हो गए।