कहते हैं कि वक्त नहीं लौटता। वक्त लौटता है, बस जरूरत है उसे यादों में सहेजने की, इस पन्ने पर यही कोशिश की गई है। ये तमाम लफ्ज मेरी जिंदगी की किसी न किसी वाकये से जुड़े हुए हैं। जब भी मुझे उन लम्हों को फिर से जीना होगा। मैं इन शब्दों के पुल से वापस लौटुंगा, एक बार फिर से पुराने दौर में। ये मेरी टाइम मशीन है जो विज्ञान के बजाए भावनाओं के रसायन से चलती है।
गुरुवार, 30 जून 2011
हम कतरा-कतरा थे
मोहब्बत के सफर में
कुछ ऐसे भी मंजर थे
हम कतरा-कतरा थे
तुम समंदर-समंदर थे।
ये दुनिया थी पहरे पर
कुछ मायूसी के आलम में
हम यूं बाहर-बाहर थे
तुम कहीं अंदर-अंदर थे
किस तरह लायक हो पाते
आपके खूबसूरत अक्स के लिए
हम बस औसत-औसत थे
तुम कहीं सुंदर-सुंदर थे।
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