कहते हैं कि वक्त नहीं लौटता। वक्त लौटता है, बस जरूरत है उसे यादों में सहेजने की, इस पन्ने पर यही कोशिश की गई है। ये तमाम लफ्ज मेरी जिंदगी की किसी न किसी वाकये से जुड़े हुए हैं। जब भी मुझे उन लम्हों को फिर से जीना होगा। मैं इन शब्दों के पुल से वापस लौटुंगा, एक बार फिर से पुराने दौर में। ये मेरी टाइम मशीन है जो विज्ञान के बजाए भावनाओं के रसायन से चलती है।
गुरुवार, 30 जून 2011
हम कतरा-कतरा थे
मोहब्बत के सफर में
कुछ ऐसे भी मंजर थे
हम कतरा-कतरा थे
तुम समंदर-समंदर थे।
ये दुनिया थी पहरे पर
कुछ मायूसी के आलम में
हम यूं बाहर-बाहर थे
तुम कहीं अंदर-अंदर थे
किस तरह लायक हो पाते
आपके खूबसूरत अक्स के लिए
हम बस औसत-औसत थे
तुम कहीं सुंदर-सुंदर थे।
रविवार, 27 फ़रवरी 2011
उदास नज्में
इन जाहिलों की भीड़ में जो थोडे से जुदा हो गए
मत पूछिए कि समझ बैठे की वो खुदा हो गए।
जिन्होंने कश्तियों को निकाला हैं तुफां से वो हाशिए पर
जो इस मुल्क को किनारे पर डुबा आए खुदाकसम वो नाखूदा हो गए।
ये अजब दौर कायम हुआ है जेहनी मुफलीसी का
वो मशहूर हो गए जो बेहुदा हो गए।
मेरी नज्में न जाने क्यों उदास-उदास रहती हैं तब से
मरने वाले आम और मारने वाले अलहदा हो गए।
इस व्यवस्था में से अब मुर्दो की सी बू आती है
अब इबादत करने वाले काफिर, कुफ्र करने वाले बाखूदा हो गए।
ये जाने कैसा मौसम चला है मेरे शहर में
शिकवा करने की हिमाकत करने वाले अरसे पहले गुमशुदा हो गए।
मत पूछिए कि समझ बैठे की वो खुदा हो गए।
जिन्होंने कश्तियों को निकाला हैं तुफां से वो हाशिए पर
जो इस मुल्क को किनारे पर डुबा आए खुदाकसम वो नाखूदा हो गए।
ये अजब दौर कायम हुआ है जेहनी मुफलीसी का
वो मशहूर हो गए जो बेहुदा हो गए।
मेरी नज्में न जाने क्यों उदास-उदास रहती हैं तब से
मरने वाले आम और मारने वाले अलहदा हो गए।
इस व्यवस्था में से अब मुर्दो की सी बू आती है
अब इबादत करने वाले काफिर, कुफ्र करने वाले बाखूदा हो गए।
ये जाने कैसा मौसम चला है मेरे शहर में
शिकवा करने की हिमाकत करने वाले अरसे पहले गुमशुदा हो गए।
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